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આજની આકાશવાણી

वह चीज जो दूर दिखाई देती है, जो असंभव दिखाई देती है, जो हमारी पहुच से बहार दिखाई देती है, वह भी आसानी से हासिल हो सकती है यदि हम तप करते है. क्यों की तप से ऊपर कुछ नहीं. That thing which is distant, that thing which appears impossible, and that which is far beyond our reach, can be easily attained through tapasya (religious austerity), for nothing can surpass austerity.

Friday, April 03, 2015

बाल नाटक : मस्ती की पाठशाला

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सूत्रधार : काननवन में हँसी-खुशी और धमा-चैकड़ी का माहौल देखकर आस-पास के वनवासी हैरान हो जाते थे। सुबह से रात होने तक उल्लास और आनन्द की गूँज चारों और सुनाई देती थी। काननवन में खुशियों का स्कूल जो खुल गया था। स्कूल जाने वालों के व्यवहार में तेजी से बदलाव दिखाई देने लगे थे। सभी माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे थे। यही कारण था कि भालू के स्कूल में पढ़ने वालों का तांता लगा रहने लगा।

दृश्य-1

(मेढ़क, साँप, चूहा, बिल्ली, शेर, बकरी, हाथी, बंदर, तितली, लोमड़ी, सियार, खरगोश, कुत्ता, गिलहरी और हिरन पढ़ रहे हैं और भालू पढ़ा रहा है।)

भालू : साल भर हो गया है। अब तुम्हारी परीक्षा होगी। तैयार रहिए।

मेंढक : (सिर खुजलाते हुए) परीक्षा ! ये क्या बला है?

भालू : (चेहरे पर हँसी और घबराहट लाते हुए) परीक्षा ही तुम्हें पास-फेल करेगी। मतलब ये कि तुमने साल भर क्या सीखा, कितना सीखा!

खरगोश : लेकिन हम सब तो समझ ही रहे हैं कि हम रोज कुछ न कुछ यहाँ नया सीख रहे हैं। तब भला ये परीक्षा की क्या जरूरत?

भालू : (डाँटते हुए) चुप रहो। मैं पढ़ाता हूं और तुम पढ़ते हो। मैं सीखाता हूं और तुम सीखते हो। अब समय आ गया है कि सब जान लें कि तुम में से अव्वल कौन है!

छिपकली : अव्वल ! ये अव्वल कौन है?

भालू : परीक्षा ही तय करेगी कि तुम सभी में कौन सबसे अधिक होशियार है। साल भर स्कूल में पढ़ाया गया है। सिखाया गया है। समझाया गया है। परीक्षा से तय होगा कि तुम कितने बुद्धिमान बन सके हो। अब घर जाओ और परीक्षा की तैयारी करो। कल तुम्हारी परीक्षा होगी।

सूत्रधार : स्कूल से लौटते हुए सब सोच में पड़ गए। उनके चेहरे चिंता से भर गए। तनाव और भय के कारण वे हँसना-गाना भूल गए। वे एक-दूसरे से बेवजह तुलना करने लगे। निराशा और हताशा से भरा हर कोई एक-दूसरे से दूर-दूर चलने लगा। आज सुबह तक जो नाचते-कूदते स्कूल जा रहे थे, वे स्कूल से लौटते हुए एक-दूसरे को देखकर घबरा रहे थे। परीक्षा ने जैसे उनकी आजादी छीन ली हो। खुशियों की पाठशाला एक झटके में डर की पाठशाला बन गई। हर कोई रात भर सो नहीं सका।

दृश्य-2

(मंच पर जानवर। सबके चेहरे बुझे-बुझे से। मंच के एक ओर दीवार,दूसरी ओर एक पेड़ और एक पत्थर)

भालू : ( मुस्कराते हुए ) परीक्षा यहीं मैदान में होगी। सब तैयार रहें। (दीवार की ओर संकेत करते हुए) इस दीवार पर जो चढ़ेगा। वही अव्वल माना जाएगा।

(सब दीवार की ओर दौड़े। बंदर, गधा और सियार उछलते ही रह गए। छिपकली झट से दीवार पर चढ़ गई।)

चूहा : (उदास होकर) मेरे जैसे इतनी ऊँची दीवार पर कभी नहीं चढ़ पाएंगे।
भालू: (पीपल के पेड़ की ओर संकेत करते हुए) इस पेड़ पर चढ़ो।

( उड़ने वाले पक्षी पलक झपकते ही पेड़ की शाखाओं पर पँख पसारकर बैठ गए। हिरन, मेढक जैसे जीव-जन्तु अपना सा मुंह लेकर खड़े रह गए।)

भालू: मैदान के चार चक्कर लगाओ। मैं सौ तक गिनती बोलूंगा। गिनती पूरी होने से पहले चार चक्कर जो लगाएगा वही अव्वल माना जाएगा। दौड़ो !

(सब दौड़ने लगे। खरगोश, कुत्ता सबसे आगे। कछुआ सबसे पीछे।)

भालू : मैदान के किनारे बड़ा सा पत्थर पड़ा है। हटाओ उसे।

(सबने कोशिश की। पत्थर टस से मस न हुआ। हाथी झूमता हुआ आया और उसने पत्थर को सूण्ड से धकेल दिया।)

मधुमक्खी : मैं इस परीक्षा का बहिष्कार करती हूँ। ऐसी पढ़ाई से तो अनपढ़ रह जाना ही अच्छा है। ऐसी पढ़ाई, ऐसा स्कूल और ऐसा शिक्षक मुझे स्वीकार नहीं, जो कक्षा में सहभागिता के बदले गैर बराबरी की भावना विकसित करे। इस पढ़ाई को धिक्कारना ही अच्छा है।

तितली : मैं भी इस परीक्षा का विरोध करती हूँ।

चूहा : मैं भी।

बंदर : मैं भी।

कई और : हम भी।

सभी : हम सब भी।

(सब भालू की ओर दौड़े। भालू घबरा गया। वह भागकर मंच के पीछे चला गया।)

सूत्रधार : सब उसके पीछे भागे। काननवन का स्कूल बंद हो गया। अब सब प्रकृति से सीखने लगे। अपने अनुभवों से सीखने लगे। तभी से आज तक किसी भी जंगल में कोई स्कूल नहीं लगता।
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