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આજની આકાશવાણી

वह चीज जो दूर दिखाई देती है, जो असंभव दिखाई देती है, जो हमारी पहुच से बहार दिखाई देती है, वह भी आसानी से हासिल हो सकती है यदि हम तप करते है. क्यों की तप से ऊपर कुछ नहीं. That thing which is distant, that thing which appears impossible, and that which is far beyond our reach, can be easily attained through tapasya (religious austerity), for nothing can surpass austerity.

Monday, January 11, 2016

◆डरो मत ! स्वामी विवेकानंद प्रेरक प्रसंग

पूरा नाम : स्वामी विवेकानन्द
●अन्य नाम : नरेंद्रनाथ दत्त (मूल नाम)
●जन्म : 12 जनवरी, 1863
●जन्म भूमि : कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता)
मृत्यु : 4 जुलाई, 1902
मृत्यु स्थान : रामकृष्ण मठ, बेलूर
अभिभावक : विश्वनाथदत्त (पिता)
गुरु रामकृष्ण परमहंस
कर्म भूमि : भारत
कर्म-क्षेत्र दार्शनिक, धर्म प्रवर्तक और संत
मुख्य रचनाएँ : योग, राजयोग, ज्ञानयोग
विषय साहित्य, दर्शन और इतिहास
शिक्षा : स्नातक
विद्यालय : कलकत्ता विश्वविद्यालय
प्रसिद्धि आध्यात्मिक गुरु
नागरिकता : भारतीय
संबंधित लेख राष्ट्रीय युवा दिवस, विवेकानन्द रॉक मेमोरियल, स्वामी विवेकानन्द के अनमोल वचन
अन्य जानकारी : अंग्रेज़ भारतविद ए. एल. बाशम ने विवेकानन्द को इतिहास का पहला व्यक्ति बताया, जिन्होंने पूर्व की आध्यात्मिक संस्कृति के मित्रतापूर्ण प्रत्युत्तर का आरंभ किया और उन्हें आधुनिक विश्व को आकार देने वाला घोषित किया।
राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) 

भारत में स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस पर अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। 

संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन् 1985 ई. को 'अन्तर्राष्ट्रीय युवा वर्ष' घोषित किया गया। 

इसके महत्त्व का विचार करते हुए भारत सरकार ने घोषणा की कि सन् 1985 से 12 जनवरी यानी स्वामी विवेकानन्द जन्म दिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में देशभर में सर्वत्र मनाया जाए।                   

स्वामी  विवेकानंद  बचपन  से  ही  निडर  थे , जब  वह  लगभग  8 साल  के  थे  तभी  से  अपने  एक  मित्र  के  यहाँ  खेलने  जाया  करते  थे , उस  मित्र  के  घर  में  एक  चम्पक  पेड़  लगा  हुआ  था . वह  स्वामी  जी  का  पसंदीदा  पेड़  था  और  उन्हें  उसपर  लटक कर  खेलना  बहुत  प्रिय  था .

रोज  की  तरह  एक  दिन  वह  उसी  पेड़  को  पकड़  कर  झूल  रहे  थे  की  तभी   मित्र  के  दादा  जी  उनके  पास  पहुंचे , उन्हें  डर था  कि  कहीं  स्वामी  जी  उसपर  से  गिर  न  जाए  या  कहीं  पेड़  की  डाल  ही  ना  टूट  जाए  , इसलिए  उन्होंने  स्वामी  जी  को  समझाते  हुआ  कहा , “ नरेन्द्र   ( स्वामी  जी  का  नाम ) , तुम  इस  पेड़  से  दूर  रहो  , अब  दुबारा  इसपर  मत  चढना ”

“क्यों  ?” , नरेन्द्र  ने  पूछा .

“ क्योंकि  इस  पेड़  पर  एक  ब्रह्म्दैत्य  रहता  है  , वो रात  में  सफ़ेद  कपडे  पहने  घूमता  है , और   देखने  में  बड़ा  ही  भयानक  है .” उत्तर  आया .

नरेन्द्र  को  ये  सब  सुनकर  थोडा  अचरज  हुआ  , उसने दादा जी  से  दैत्य  के  बारे  में  और  भी  कुछ  बताने  का  आग्रह  किया  .

दादा जी  बोले ,”  वह  पेड़  पर  चढ़ने  वाले  लोगों  की  गर्दन  तोड़  देता  है .”

नरेन्द्र  ने  ये  सब  ध्यान  से  सुना  और  बिना  कुछ  कहे  आगे  बढ़  गया . दादा  जी  भी  मुस्कुराते  हुए  आगे  बढ़  गए , उन्हें  लगा  कि  बच्चा  डर  गया  है . पर  जैसे  ही  वे  कुछ  आगे  बढे  नरेन्द्र  पुनः  पेड़  पर  चढ़  गया  और  डाल  पर  झूलने  लगा .

यह  देख  मित्र  जोर  से  चीखा , “ अरे  तुमने  दादा  जी  की  बात  नहीं  सुनी , वो  दैत्य  तुम्हारी  गर्दन  तोड़  देगा .”

बालक नरेन्द्र  जोर  से  हंसा  और  बोला   , “मित्र डरो मत ! तुम  भी  कितने  भोले  हो  ! सिर्फ  इसलिए  कि  किसी  ने  तुमसे  कुछ  कहा  है  उसपर  यकीन  मत  करो ; खुद  ही  सोचो  अगर  दादा  जी  की  बात  सच  होती  तो  मेरी  गर्दन  कब  की  टूट चुकी  होती .”

सचमुच  स्वामी विवेकानंद  बचपन  से  ही  निडर  और  तीक्ष्ण  बुद्धि  के  स्वामी  थे .

 ● स्वामी विवेकानंद का विश्वप्रसिद्ध भाषण(speech) सुनने के लिए नीचे क्लिक करे